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स्वामी हरिदास जी और हरिदास परंपरा : कृष्णभक्ति की अमर धरोहर

भारतीय संत परंपरा में स्वामी हरिदास जी का नाम अत्यंत आदर और श्रद्धा के साथ लिया जाता है। वे 16वीं शताब्दी के एक महान संत, कवि और संगीतकार थे, जिन्होंने कृष्णभक्ति की एक विशिष्ट शाखा को जन्म दिया। यह शाखा निंबार्क संप्रदाय की उपशाखा मानी जाती है और इसे हरिदासी संप्रदाय या सखी संप्रदाय कहा जाता है। इस परंपरा की सबसे विशेष बात यह है कि इसमें राधा-कृष्ण की आराधना सखी भाव से की जाती है।

आराधना और पूजा पद्धति

हरिदास परंपरा में भगवान श्रीकृष्ण को कुंजबिहारी और राधा जी को कुंजबिहारिनी के रूप में पूजा जाता है। भक्तजन स्वयं को भगवान की सखियों के रूप में मानकर सेवा और भक्ति करते हैं। इसे निकुंजोपासना कहा जाता है, जो आत्मिक रूप से भक्त और भगवान को जोड़ने का सुंदर माध्यम है।

स्वामी हरिदास का योगदान

स्वामी हरिदास जी न केवल भक्त कवि थे, बल्कि भारतीय शास्त्रीय संगीत के महान आचार्य भी थे। उन्हें भक्ति संगीत का पितामह कहा जाता है। उनके शिष्य रहे तानसेन और बैजू बावरा, जिनके नाम भारतीय संगीत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से दर्ज हैं। तानसेन जैसा महान गायक भी स्वामी हरिदास जी की गायकी और भक्ति से प्रभावित होकर उनका शिष्य बना।

उनकी साधना और तपस्या के परिणामस्वरूप ही ठा. बांके बिहारी जी का प्राकट्य हुआ, जो आज वृंदावन में भक्तों की आस्था का केंद्र हैं। बांके बिहारी मंदिर न केवल ब्रजभूमि, बल्कि सम्पूर्ण भारत में कृष्णभक्ति का प्रमुख तीर्थस्थल है।

स्वामी हरिदास जी की वाणी

स्वामी हरिदास जी की रचनाएँ गहन भावुकता और भक्ति से परिपूर्ण हैं। उन्होंने अपने पदों और गीतों के माध्यम से कृष्ण-राधा की लीला और माधुर्य का अनुपम चित्रण किया। उनकी वाणी को सुनकर मुगल सम्राट अकबर भी उनके दर्शन के लिए वृंदावन पहुँचे थे। कहा जाता है कि उनके संगीत में ऐसी करुणा और माधुर्यता थी कि सुनने वाला आत्मविभोर हो जाता था।

आध्यात्मिक महत्त्व

हरिदास परंपरा केवल एक धार्मिक आंदोलन नहीं थी, बल्कि यह समाज को भक्ति, संगीत और प्रेम की शक्ति से जोड़ने वाली धारा थी। यहाँ भक्ति केवल पूजा तक सीमित नहीं, बल्कि सखी भाव में आत्मिक अनुभव है — जहाँ भक्त स्वयं को भगवान की अंतरंग सखी मानकर उनके साथ लीला में सहभागी होता है।

निष्कर्ष

आज भी वृंदावन की गलियों में गूंजने वाले भजन और संकीर्तन स्वामी हरिदास जी की परंपरा की ही जीवंत गवाही देते हैं। उनकी दी हुई यह भक्ति-धारा न केवल कृष्ण-राधा की महिमा को जीवित रखे हुए है, बल्कि लाखों भक्तों के जीवन में प्रेम, श्रद्धा और संगीत का संचार कर रही है।

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